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उत्तराखंड: चीड़ की पत्तियों की राखी से सजेगी भाई की कलाई, जंगलों की आग से भी मिलेगी निजात

उत्त्तरकाशी मे महिलाओं का एक समूह पिरूल से राखियां तैयार कर रहा है. ये समूह दुरस्त उत्तरकाशी के पुरोला का है.

जिन चीड़ की पत्तियों को जंगलों के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक माना जाता है, उन्हीं चीड़ की पत्तियों से महिलाएं ऐसे-ऐसे उत्पाद बना रही हैं जिनके बारे में शायद कोई सोच भी नहीं सकता.रक्षा बंधन का त्यौहार नजदीक आ रहा है तो ऐसे में  उत्त्तरकाशी मे महिलाओं का एक समूह पिरूल से राखियां तैयार कर रहा है. ये समूह दुरस्त उत्तरकाशी के पुरोला का है. जहां ग्रामीण उद्यम परियोजना के अंतर्गत महिला समूह को पिरूल से राखियां बनाने का प्रशिक्षण दिया गया. जिसके बाद करीब 28 महिलाएं इन दिनों स्वरोजगार के लिए राखियां तैयार कर रही हैं. ग्रामीण उद्यम परियोजना के परियोजना प्रबंधक कपिल उपाध्याय ने बताया कि पिरूल से राखियां बनाने का प्रशिक्षण महिलाओं को दिया गया था जिसके बाद महिलाएं इसमे रुचि ले रही हैं और आत्मनिर्भर बन रही हैं.

उत्तराखण्ड में 500 से 2200 मीटर की ऊंचाई पर बहुतायत से पाये जाने वाले चीड़ के पेड़ों की पत्तियों को पिरूल नाम से जाना जाता है. उत्तराखण्ड वन सम्पदा के क्षेत्र में चीड़ के वन भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं. इसके सूखे पत्ते अत्यन्त ज्वलनशील होते हैं. पर्वतीय क्षेत्रों में वनाग्नि के मुख्य कारणों में पिरूल भी एक कारण है. चीड़ के पेड़ पर लगने वाले ठीटे का थोड़ा बहुत व्यावसायिक उपयोग शो पीस बनाकर किया जाता रहा है, जो कि पर्यटकों को भी पसंद आता रहा है. इसके अलावा पिरुल का उपयोग जानवरों के बिछावने के रूप में होता आ रहा है. इसके अलावा पिरुल का अब तक कोई खास इस्तेमाल नहीं हुआ है.

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