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उत्तराखंड के भट्ट ब्राह्मण कराएंगे अयोध्या में भगवान राम की प्राण-प्रतिष्ठा, जानिए इनका पूरा इतिहास

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की तरफ रहने वाले लोगों में भट्ट ब्राह्मण एक प्रमुख उपजाति है. पिथौरागढ़ से लगे हुए बिसाड गांव के भट्ट ब्राह्मण प्रमुख हैं.

अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में होगी. राम लला की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम 16 जनवरी को शुरू हो जाएगा और इसके अगले दिन से भी भक्त रामलला के दर्शन कर सकेंगे.  लगभग साढ़े 500 सालों के बाद भगवान श्रीराम अपने भव्य और दिव्य मंदिर में विराजमान होंगे. भगवान श्रीरामचंद्र के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के अवसर पर रामलला के दर्शन करने की अभिलाषा हर सनातन धर्मावलंबी के हृदय में है. हर कोई इस दिन भगवान श्रीराम को नजदीक से निहारने की अभिलाषा संजोए हुए है. भगवान की प्राण प्रतिष्ठा का यह समारोह उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में रहने वाले भट्ट ब्राह्मणों द्वारा संपन्न करवाया जाना है, जो कि संपूर्ण उत्तराखंड वासियों के भाग्यों को उदय करने वाला होगा. भट्ट का सामान्य अर्थ ‘विद्वान’ कहा जाता है और भट्ट कोई जाति नहीं बल्कि एक उपाधि है. कहा जाता है कि जब ब्राह्मण वंश के लोग किसी भी विद्या के क्षेत्र में ज्ञान अर्जन कर अभूतपूर्व सफलता को पा लेते थे, तब उन्हें भट्ट नामक उपाधि से नवाजा जाता था. लिखा गया है कि ब्रह्म को अच्छे ढंग से जानने वाला ब्राह्मण जिसे ब्रह्म का ऐसा ज्ञान हो कि वह समाज के साथ उस ज्ञान को बांटने में पूरक हो वह भट्ट ब्राह्मण है. 

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की तरफ रहने वाले लोगों में भट्ट ब्राह्मण एक प्रमुख उपजाति है. पिथौरागढ़ से लगे हुए बिसाड गांव के भट्ट ब्राह्मण प्रमुख हैं. इस गांव में रहने वाले भट्ट ब्राह्मण के मूल पुरुष श्री विश्व शर्मा दक्षिण द्रविण देश से बम राजाओं के जमाने में आए बताए जाते हैं. इसके बाद बम राजा ने इन्हें वेदपाठी समझ कर अपने राज्य में आश्रय दिया था और बिसाड़ गांव जागीर में दिया गया. इसके कुछ समय बाद इन्हें राज्य कर्मचारी बनाया गया. कुमाऊं मंडल के भट्ट कालांतर में विशाल पल्लू, खेती गांव पांडे, खोला काशीपुर, रामनगर आदि में रहा करते थे, जिसके बाद देश भर में उनकी शाखाएं फैल गईं. बसाद गांव के भट्ट ब्राह्मण के अलावा कुछ और प्रकार के भट्ट भी है जो राजा भीष्म चांद के समय बनारस से दक्षिण भारत आए थे. राजा ने उनको शुद्ध ब्राह्मण समझकर दरबार की पाठशाला में महाराज बनाया बिशप यानी भटकोट के रहने वाले भट्ट अपने आप को काशी से आया बताते हैं. कुछ लोग राजा अभय चांद तो कुछ भीष्म चांद के समय में अपना पलायन बताते हैं. भट्ट शब्द के संक्षिप्त इतिहास की ओर देखा जाए तो भट्ट शब्द का अर्थ ब्राह्मण या पुजारी होता है. इनकी कुल 10 क्षेत्रीय भुजाएं हैं जिसमें पांच उत्तर भारतीय ब्राह्मण और पांच दक्षिण भारतीय ब्राह्मण हैं. उनमें ब्रह्म भट्ट सबसे उच्च कोटि के ब्राह्मण माने गए हैं जो कि सारस्वत भाग में आते हैं, जिन्हें भृगु संहिता में ब्रह्म सारस्वत कहा गया है. आगे पढ़िए

प्राचीन ग्रंथो और हिंदू धर्म के अनुसार इस वर्ग की उत्पत्ति ब्रह्मा जी द्वारा की गई है. यही कारण है कि ब्रह्म भट्ट ब्राह्मण को समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त है और उन्हें देवपुत्र भी कहा जाता है. ब्रह्म भट्ट राजा के दरबार में कई सलाहकार इतिहासकार साहित्यकार राजनीतिज्ञ हुआ करते थे. केवल ब्रह्म भट्ट को ही राजा के विरुद्ध बोलने का अधिकार प्राप्त था क्योंकि माना जाता था कि सरस्वती देवी इनकी जीभ पर निवास करती हैं इसलिए इन्हें सरस्वती पुत्र भी कहा गया है जो कि ब्रह्मा जी की अर्धांगिनी है. कहा जाता है कि मौर्य काल तक यही एकमात्र संस्कृत जानने वाले ब्राह्मण हुआ करते थे. जैसे-जैसे एक स्थान से दूसरे स्थान की तरफ पलायन किया, वैसे-वैसे यह अपना ज्ञान भी समाज के दूसरे लोगों तक पहुंचाने गए. इसके बाद यह बिहार उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश महाराष्ट्र गोवा आदि राज्यों में पलायन कर गए. कहा जाता है कि कश्मीरी पंडित भी यही ब्रह्म भट्ट ब्राह्मण है जिन्होंने कभी अपना स्थान नहीं बदला और वैदिक काल में वह हिमालय तक ही साधुओं तपस्या की भांति रहते गए.

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