साल 2021 को रैणी आपदा की दुखद यादों के लिए भी जाना जाएगा. शायद जो सबक हम वर्ष 2013 की कैदारनाथ आपदा में नहीं सीख पाए, उसी के चलते रैणी आपदा हमें गहरे जख्म दे गई. उत्तराखंड को झकझोर देने वाली ऋषि गंगा की आपदा को आज एक वर्ष पूरा हो गया है. इस आपदा में 206 जिंदगियां मलबे में दफन हो गई थीं. इस जलप्रलय को याद करते ही आज भी रैणी और तपोवन घाटी के ग्रामीणों की रूह कांप जाती है. आलम ये है कि आज भी तपोवन और रैणी क्षेत्र के ग्रामीण नदी किनारे जाने से भी घबरा रहे हैं. उन्हें आज भी अनहोनी की आशंका सता रही है.
आज भी इस आपदा की याद आती है तो आपदा प्रभावितों सहित प्रत्यक्षदर्शियों की रूह कांप जाती है. 7 फरवरी 2021 को कैसे चटख धूप साफ सुहावने मौसम में प्रकृति का खौफनाक चेहरा सामने आया, ऋषि गंगा में रैंठी ग्लेशियर टूटने से जल प्रलय ने तबाही मचाई थी. 13 मेगावाट की ऋशि गंगा जल विद्वुत परियोजना का नामोनिशान मिट गया था. जबकि सरकार ने आपदा में 206 लोगों को मृत्यु प्रमाण पत्र दिए के साथ आश्रितों को मुआवजा भी दिया गया है. 88 शव भी बरामद हुए हैं, लेकिन अभी भी 117 लापता लोगों का पता नहीं है. हालांकि, अभी तक 38 मानव अंग बरामद हुए थे. 52 शवों व एक मानव अंग की शिनाख्त हुई थी.
इस तबाही का जख्म अभी भी नहीं भर पाया है. ग्रामीणों की मानें तो पैदल रास्ते अभी भी क्षतिग्रस्त पड़े हैं और ऋषि गंगा के किनारे बाढ़ सुरक्षा कार्य भी नहीं हुए हैं. आपदा के बाद से रैणी में लगातार भू कटाव बढ़ रहा है. यहां तक की बार्डर हाईवे भी लगातार धस रहा है. जिस कारण ग्रामीण परेशान हैं. हाईवे का स्थाई ट्रीटमैंट अभी तक नही हो पाया है. गांव में दरारें भी बढ़ रही है. धौली गंगा पर चार पैदल पुल बहने के बाद आज भी पुलों का निर्माण नहीं हो पाया. वहीँ दूसरी तरफ रैणी आपदा के बाद प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में कुछ ऐसा हो रहा है, जिसने वैज्ञानिकों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. हिमालयी क्षेत्रों में हो रही हलचल की एक मुख्य वजह ग्लोबल वॉर्मिंग को माना जा रहा है, लेकिन वैज्ञानिक अभी ग्लोबल वॉर्मिंग और पहाड़ों की हलचल के कनेक्शन को लेकर पुख्ता नहीं हैं.
आपको बता दें की ऋषि गंगा की आपदा के बाद अब एनटीपीसी 24 घंटे अलकनंदा और धौली गंगा के जलस्तर पर नजर बनाए हुए है. एनटीपीसी के महाप्रबंधक आरपी अहिरवार ने बताया कि नदियों के जलस्तर पर नजर रखने के लिए सुरांईथोटा, रैणी और गोविंदघाट में कर्मचारियों की तैनाती की गई है, जो 24 घंटे नदियों के जलस्तर पर नजर रखे हुए हैं। जल्द ही नदियों के जलस्तर की रिपोर्ट ऑनलाइन मिलनी शुरू हो जाएगी. इस आपदा में हजारों घरों को नुकसान पहुंचा है और जोशीमठ, मलारी, रेणी सहित दर्जनों गांव प्रभावित हुए हैं. अपनों को खोने के साथ ही घर-मकान ढह जाने से लोग आसरा ढूंढ रहे हैं. लेकिन एक सबसे बड़ा सवाल सबके जेहन में आता है कि आखिर आपदा में सब कुछ खो देने वाले ये लोग कब तक सामान्य जीवन में प्रवेश कर पाएंगे.