आप गए हैं कभी उत्तराखंड? एकदम स्वर्ग सा दिखता है.हो भी क्यों ना, भगवान ने स्वयं अपने हाथों से जो बनाया है इसे.दुनिया की सबसे सुंदर इमारतें और सुख सुविधाओं से सजे आलीशान घर इस देवभूमि की तुलना में रत्ती भर नहीं हैं.कहते हैं ऋषि मुनियों ने सैकड़ों साल तपस्या करके इसे दिव्यभूमि बनाया है, जिसका वैभव पाने के लिए श्रद्धालु मीलों की यात्रा करके अपने भगवान के दर्शन को आते हैं.देवभूमि उत्तराखंड, जिसकी हवा में है गंगा आरती की सुगन्ध और शाम स्वयं में समेटे है ढेर सारी शीतलता.चलिए तपोभूमि उत्तराखंड का एक सफ़र, हमारे साथ.
क्यों कहा जाता है देवभूमि
माना जाता है पूरे भारत के देवी देवताओं का और महान ऋषियों का जन्म यहीं हुआ इसीलिए इसे देवभूमि कहा जाता है.इसके पीछे कई कहानियां भी हैं
- पूरे भारत की सबसे विशाल और पवित्रत नदियाँ देवभूमि उत्तराखंड से निकलती हैं.गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का उद्गम स्थल है उत्तराखंड।
- देवभूमि उत्तराखंड में भगवान शिव का ससुराल भी है. भगवान शिव का ससुराल हरिद्वार जिले के कनखल में स्थित है. यह जगह दक्ष प्रजापति नगर के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार हर सावन के महीने में भगवान शिव का यहां आगमन होता है और इसी जगह में उनका विवाह माता सती के साथ हुआ था ,इसीलिए यह जगह उनके ससुराल के नाम से जाना जाता है.
- पाण्डवों से लेकर कई राजाओं ने तप करने के लिए इस महान भूमि को चुना है.ध्यान लगाने के लिए महात्मा इस जगह को उपयुक्त मानते हैं और आते हैं.कई साधुओं ने यहाँ स्तुति कर सीधा ईश्वर की प्राप्ति की है.पाण्डव अपने अज्ञातवास के समय उत्तराखंड में ही आकर रुके थे।
उत्तराखंड का इतिहास
महाभारत का लेखन महर्षि व्यास ने इसी देवभूमि उत्तराखंड में किया था.उत्तराखंड की सांस्कृतिक और भौतिक विरासत को दो भागों, कुमाऊँ और गढ़वाल में बाँट सकते हैं.सभी कहानियों में इन दोनों का ज़िक्र ख़ूब मिलेगा.जिस देवभूमि उत्तराखंड को तपोभूमि की संज्ञा देते हैं हम, उसको बाद में हमारी ही नस्लों ने ख़ून ख़राबे से गंदा किया.उत्तराखंड के ऊपर पुरु वंश ने शासन प्रारंभ किया जिस पर आगे चलकर नंद, मौर्य, कुषाण ने शासन किया.आगे इस पर ब्रिटिशों ने भी राज किया.गढ़वाल के पश्चिमी हिस्से में बनी भगवान बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण सम्राट अशोक ने कराया था.कुछ ऐसे ही ऐतिहासिक तथ्य उत्तराखंड की गलियों से गुज़रते हैं जिसमें एक बड़ा नाम चिपको आन्दोलन का है जिससे बाद में देश के सबसे बड़े पर्यावरणविदों और नेताओं ने साथ दिया और इसने देश के सबसे बड़े अहिंसक आन्दोलन के रूप में अपनी पहचान बनाई।
इसके अलावा भी ऐसे अनेक पौराणिक कहानियां और तथ्य हैं जो की उत्त्तराखंड कि देवभूमि होने कि पुष्टि करते हैं जैसे की महाभारत के वन पर्व में भी उत्तराखंड का उल्लेख मिलता है ऐसा माना गया है की कुरुक्षेत्र में अपने सगे-सम्बन्धियों कि हत्या करने के बाद इसका पश्च्याताप करने के लिए सभी पांडव हिमालय की और जाते हैं और वो रास्ता उत्तराखंड के “माणा गाँव” जिसे की देश का आखरी गांव भी कहते है, से ही गुजर के गए थे.महाभारत के अनुसार ऐसा माना जाता है, की जब सभी पांडव एक एक कर के अपना शरीर त्यागते गए और अंत में जब सिर्फ धर्मराज युधिष्ठिर ही बचते हैँ तो वो इसी जगह (उत्तराखंड) से स्वर्ग गए थे.इसके अलावा भी ऐसे न जाने और कितने प्रमाण है जिनके विषय में यदि बात की जाये तो शायद कभी खत्म ही न हो.इसीलिए शायद किसे ने सही ही कहा है कि अच्छे लोगो और अच्छी जगहों के बारे में शब्दों में बयां करना मुश्किल होता है.फिर भी हमने आपको उत्तरखंड क़े पौराणिक महत्व क़े बारे में एक संक्षिप्त वर्णन देने का प्रयत्न किया है.