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सालों बाद फिर से जीवंत हुआ उत्तराखंड ये का ‘घोस्ट विलेज’, दो युवाओं ने अपनी मेहनत से कर दिया गुलजार

उत्तराखंड के करीब 1700 गांवों को लोगों ने भूतिया मान कर अलविदा कह दिया. लेकिन, उनमें से अब एक गांव गुलजार हुआ है. वह भी दो युवाओं की मेहनत और लगन से.

आज के समय में उत्तराखंड जलवायु परिवर्तन और पलायन की दोहरी चुनौती का सामना कर रहा है. उत्तराखंड के सैकड़ों गावों के ‘भुतहा’ होने की कहानी भी दिलचस्प है. इन गावों के वीरान होने की वजह यहां से दूसरे प्रदेशों में हुआ पलायन रहा. प्राकतिक आपदाओं, संसाधनों के दोहन के नाम पर हुए मैन मेड डिजास्टर और गांवो में संसाधनों की कमी के चलते लोग शहरों में बस गए. उत्तराखंड सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश के करीब 1700 गांवों को लोगों ने भूतिया मान कर अलविदा कह दिया. यही वजह है कि इन गांवों को लोग अब भूतिया गांवों के तौर पर पुकारने लगे हैं. लेकिन, उनमें से अब एक गांव गुलजार हुआ है. वह भी दो युवाओं की मेहनत और लगन से. कोरोना काल में गांव लौटे दोनों युवाओं ने इस जगह को पूरी तरह बदल दिया. आगे पढ़िए-

जी हाँ हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के मटियाल गांव की. इस गांव को लोगों ने भूतिया मानकर छोड़ दिया था. लेकिन वर्ष 2020 में कोविड लॉकडाउन लगने की वजह से 34 वर्षीय विक्रम सिंह मेहता, जो महामारी से पहले मुंबई के एक रेस्तरां में काम करते थे और 35 वर्षीय दिनेश सिंह, जो पानीपत में ड्राइवर के रूप में काम करते थे, जून 2020 में लगभग उसी समय पिथौरागढ़ के अपने पैतृक गाँव मटियाल लौट आए, जब दोनों लौटे तो उनके सामने एक खाली गांव था. लेकिन, पानी की कमी नहीं थी. जमीन भी उपजाऊ. इसलिए, दोनों ने अनाज और सब्जियों की खेती करने का फैसला लिया. उन्होंने मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत 1.5 लाख रुपये का ऋण प्राप्त करने के बाद अनाज और सब्जियों की खेती शुरू की, आपको बता दें की मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का उद्देश्य उत्तराखंड की पहाड़ियों में रिवर्स माइग्रेशन को प्रोत्साहित करना है. साथ ही मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत स्थानीय लोग व्यवसाय शुरू करने के लिए सब्सिडी पर 10 लाख रुपये से 25 लाख रुपये तक का ऋण ले सकते हैं.आगे पढ़िए-

दोनों युवाओं ने अब बैल और बकरियां खरीदी और गांव में पशुपालन का भी काम शुरू कर दिया है. इसे देखकर अन्य परिवार भी गांव लौटने पर विचार कर रहे हैं. करीब दो दशक पहले मटियाल गांव में 20 परिवार रहते थे. हालांकि यहाँ बिजली और पानी के कनेक्शन जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं, इसलिए कई युवा नौकरी के लिए मेट्रो शहरों में चले गए, जबकि कुछ परिवार 2012 में सड़क मिलने पर पड़ोसी गांव कोटली में चले गए. आपको बता दें की पांच साल पहले मटियाल भूत गांव बन गया, लोग गांव छोड़ गए तो यहां की जमीन बंजर हो गई. इसके बारे में भूतिया गांव का किस्सा प्रचलित हो गया.विक्रम ने कहा कि जब हम गांव लौटे तो यहां के बारे में कई यादें थीं. पहले यहां लोग गेहूं, धान और सब्जियां उगाते थे. हमारे गांव में उपजाऊ जमीन और पर्याप्त सुविधांए थीं. आगे पढ़िए-

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इसलिए, जब हम 2020 में वापस आए तो हमने गांव की अर्थव्यवस्था को फिर से जीवित करने का प्रयास किया. उत्तराखंड के बागवानी विभाग के सहायक विकास अधिकारी गौरव पंत ने कहा कि विक्रम मेहता और दिनेश सिंह को राज्य सरकार के एंटी-माइग्रेशन योजना के तहत सुविधा दी गई. उन्होंने बताया कि मटियाल गांव की पहचान एक पलायन प्रभावित गांव के रूप में की जाती है. मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना के तहत ऐसे गांव में वापस बसने वाले लोगों को सुविधा दिए जाने का प्रावधान है. साथ यह योजना उन गाँवों के लिए है जहाँ 50% या उससे अधिक क्षेत्र प्रवास से प्रभावित हुए हैं. साथ ही गांव मटियाल में संभव हुए आर्थिक अवसरों के बारे में जानने के बाद, तीन अन्य परिवार जो कोटली गांव में स्थानांतरित हो गए थे, वे भी मटियाल लौट आए हैं.

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