देवभूमि उत्तराखंड के इस मंदिर में विश्राम करने के लिए पहुंचती है महाकाली, जानिए यहाँ के अनसुने रहस्य
जब सुबह मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तो बिस्तर पर सिलवटें पड़ी रहती हैं. स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि स्वयं महाकाली रात्रि में इस स्थान पर विश्राम करती हैं.
बचपन में हम अपने दादा दादी मां पिताजी से अनेकों रहस्य से भरपूर कहानियां सुनते थे. उनमें से देवी-देवताओं की कहानियां सुनकर एक रोमांच और एक कल्पना शक्ति का संचार हमारे अंदर होता था. लेकिन क्या आप जानते हैं, देवभूमि उत्तराखंड में ऐसे कई स्थान है जहां पर आज भी साक्षात देवी देवताओं का वास है. उत्तराखंड में एक ऐसा मंदिर भी है जहां कहा जाता है कि हर रात महाकाली विश्राम करने के लिए पहुंचती है. मंदिर में जाने के बाद हर सुबह उनके रात्रि विश्राम के प्रमाण मिलते हैं. जी हाँ हम बात कर रहे हैं कालिका मंदिर, जो “हाटकालिका” के नाम से प्रसिद्ध है. यह मंदिर पिथौरागढ़ जिले की गंगोलीहाट तहसील में प्रसिद्ध पाताल भुवनेश्वर गुफा से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, कहा जाता है कि इस प्रसिद्ध सिद्धपीठ की स्थापना “आदि गुरु शंकराचार्य” ने की थी. बता दें कि सरयू गंगा तथा राम गंगा के मध्य स्थित होने के कारण पूरे गंगोलीहाट क्षेत्र को प्राचीन समय में गंगावली कहा जाता था, जो धीरे-धीरे बदलकर गंगोली हो गया, स्थानीय मान्यताओं के अनुसार “हाटकालिका देवी” रणभूमि में गए जवानों की भी रक्षा करती है, हाटकालिका में विराजमान महाकाली भारतीय सेना के कुमाऊँ रेजिमेंट के जवानों की आराध्या भी है.
देवी मां के कुमाऊं रेजिमेंट की आराध्य देवी बनने की कहानी भी बेहद ही दिलचस्प है. असल में युद्ध के दौरान कुमाऊं रेजीमेंट की एक टुकड़ी पानी के जहाज से कहीं कूच कर रही थी. इस दौरान जहाज में तकनीकी खराबी आ गई और जहाज डूबने लगा. ऐसे में मृत्यु नजदीक देख टुकड़ी में शामिल जवान अपने परिजनों को याद करने लगे तो टुकड़ी में शामिल पिथौरागढ़ निवासी सेना के एक जवान ने मदद के लिए हाट कालिका मां का आह्वान किया. जिसके बाद देखते-देखते डूबता जहाज पार लग गया और यहीं से हाट कालिका कुमाऊं रेजिमेंट की आराध्य देवी बन गई. आज भी कुमाऊं रेजिमेंट की तरफ से मंदिर में नियमित तौर पर पूजा -अर्चना की जाती है. तो वहीं कुमाऊं रेजिमेंट का युद्धघोष ही ‘कालिका माता की जय’ है.
आपको बता दें की यहां पर एक प्रथा सदियों से प्रचलित है. मंदिर के पुजारी शाम के समय एक बिस्तर लगाते हैं. जब सुबह मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तो बिस्तर पर सिलवटें पड़ी रहती हैं. स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि स्वयं महाकाली रात्रि में इस स्थान पर विश्राम करती हैं. वहीं यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर में अगर श्रद्धालु सच्चे मन से मां की आराधना करता है तो उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. यहां पर भक्तों के द्वारा मंदिर में चुनरी बांधकर अपने मन की बात कहते हैं फिर जब मनोकामना पूरी होती है तो दोबारा आकर घंटी चढ़ाने की परंपरा है. गंगोलीहाट स्थित हाट कालिका को मूल रूप माना जाता है, वहीं हाट कालिका का एक रूप पिथौरागढ़ से 20 किलोमीटर दूर लछैर नामक जगह पर भी है. यहां पर भी कालिका मंदिर स्थापित है. जो लोग मां के दर्शन के लि हाट कालिका नहीं पहुंच सकते हैं, वह लछैर स्थित कालिका मंदिर में दर्शन के लिए पहुंंचते हैं.