वर्ष 2013 की केदारनाथ त्रासदी, वर्ष 2021 में धौलीगंगा की बाढ़ से हुई तबाही और पिछले वर्ष सिक्किम के लोहनक झील के टूटने की घटनाओं के मद्देनजर अब उत्तराखंड में स्थित ग्लेशियरों को लेकर सरकार सतर्क हो गई है. प्रदेश की 347 ग्लेशियर झीलों में से 17 को जोखिम संभावित श्रेणी में रखा गया है. इसे देखते हुए ग्लेशियरों और वहां स्थित झीलों पर निरंतर निगरानी रखने का निर्णय लिया गया है.आपदा प्रबंधन सचिव डा रंजीत कुमार सिन्हा की अध्यक्षता में सोमवार को सचिवालय में नामी संस्थानों के प्रतिनिधियों के साथ हुई बैठक में निर्णय लिया गया कि 10 दिन के भीतर ग्लेशियरों की निगरानी के लिए समिति का गठन किया जाएगा. इसमें विभिन्न संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल किए जाएंगे. जलवायु परिवर्तन के कारण वर्तमान में जहां एक ओर उच्च हिमालयी क्षेत्र में बर्फबारी के स्थान पर वर्षा होने लगी है, वहीं बढ़ते तापमान के कारण हिमनदों के गलने की दर में वृद्धि हुई है. इससे हिमनद पीछे होते जा रहे हैं. यही नहीं, ग्लेशियरों द्वारा खाली किए गए स्थानों पर हिमनदों द्वारा लाए गए मलबे के बांध (मोरेन) के कारण बनी कुछ झीलों का आकार वर्षा और हिमनदों के गलने से तेजी से बढ़ रहा है. एक सीमा के बाद पानी का दबाव मलबे के बांध को तोड़कर निचले क्षेत्रों में तबाही का कारण बन सकता है. जलवायु परिवर्तन के कारण वर्तमान में जहां एक ओर उच्च हिमालयी क्षेत्र में बर्फबारी के स्थान पर वर्षा होने लगी है, वहीं बढ़ते तापमान के कारण हिमनदों के गलने की दर में वृद्धि हुई है. इससे हिमनद पीछे होते जा रहे हैं. यही नहीं, ग्लेशियरों द्वारा खाली किए गए स्थानों पर हिमनदों द्वारा लाए गए मलबे के बांध (मोरेन) के कारण बनी कुछ झीलों का आकार वर्षा और हिमनदों के गलने से तेजी से बढ़ रहा है. एक सीमा के बाद पानी का दबाव मलबे के बांध को तोड़कर निचले क्षेत्रों में तबाही का कारण बन सकता है. पूर्व में केदारनाथ, धौलीगंगा व सिक्किम में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं.
इनकी पुनरावृत्ति रोकने और घटित होने की स्थिति में प्रभावित होने वाले जनसमुदाय को समय से चेतावनी जारी करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने एक समिति गठित की है. समिति ने उत्तराखंड में ऐसी 13 ग्लेशियर झीलें चिह्नित की हैं, जो जोखिम की दृष्टि से संवेदनशील हैं. राज्य सरकार ने इसमें चार और झीलें शामिल की हैं. आपदा प्रबंधन सचिव डा रंजीत कुमार सिन्हा ने सोमवार को ग्लेशियरों व वहां स्थित झीलों को लेकर विभिन्न संस्थानों के प्रतिनिधियों के साथ समीक्षा की. इस अवसर पर वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान की ओर से बताया गया कि वह गंगोत्री ग्लेशियर की निगरानी कर रहा है. यह बात सामने आई है कि इस ग्लेशियर के साथ ही कई झीलें अत्यधिक जोखिम के अंतर्गत हैं. इसी तरह वसुधारा ताल में भी जोखिम अधिक है. भागीरथी, मंदाकिनी व अलकनंदा नदियों के निकट ग्लेशियर झीलों की निगरानी कर रहे आइआइआरएस की ओर से जानकारी दी गई कि केदारताल, भिलंगना व गोरीगंगा ग्लेशियर का क्षेत्र निरंतर विस्तृत हो रहा है. आने वाले समय में आपदा जोखिम के लिहाज से संवेदनशील हो सकते हैं.