चाहे वृद्ध हो, वयस्क हो, या फिर बच्चे, चारधाम की यात्रा करना सभी की कामना होती है. सभी की इच्छा रहती है कि जीवन में एक बार उत्तराखंड में स्थित सभी चारों धामों की यात्रा हो जाए बस. यहीं वजह है कि पूरे सालभर में मात्र कुछ ही महीने खुले रहने के बावजूद पर्यटकों को संख्या लगातार बढ़ती ही गई है. वहीं अब आने वाले दिनों में यमुनोत्री धाम की यात्रा सुगम होने के साथ-साथ सुरक्षित भी हो जाएगी. यमुनोत्री धाम से 50 किमी दूर एक डबल लेन सुरंग का निर्माण किया जा रहा है. आलवेदर रोड प्रोजेक्ट के तहत तैयार की जा रही सुरंग की लंबाई 4.5 किमी है. इसमें से 3.1 किमी तक निर्माण पूरा कर लिया गया है. इस सुरंग के तैयार होने के बाद ऋषिकेश से यमुनोत्री की दूरी 26 किलोमीटर घट जाएगी. फिलहाल दोनों के बीच की दूरी 256 किमी है.
आपको बता दें की यमुनोत्री धाम पहुंचने के लिए वाहनों को राडी टाप नामक पहाड़ी से गुजरना पड़ता है. यह पहाड़ी यमुनोत्री से 70 किलोमीटर दूर है. समुद्र तल से सात हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित यह पहाड़ी शीतकाल में बर्फ से ढकी रहती है. भारी बर्फबारी से यातायात भी बाधित रहता है. जिससे यमुना घाटी की एक बड़ी आबादी का जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से संपर्क कट जाता है. इसके अलावा सिंगल लेन सड़क और घुमावदार मोड़ों के कारण यहां यात्रा सीजन में जाम और दुर्घटनाएं आम बात थी. चारधाम रोड परियोजना के तहत इस हिस्से में डबल लेन सुरंग बनाने की योजना बनी. इससे चौड़ीकरण होने पर बड़ी मात्रा में होने वाला पेड़ों का कटान भी बच गया. राड़ी टॉप के इस हिस्से में रोडोडेंड्रॉन का डेन्स फ़ॉरेस्ट है. यदि सड़क चौड़ीकरण का काम होता, तो हजारों पेडो की बलि देनी पड़ती. ये पर्यावरण के लिहाज से एक बड़ा नुकसान हेाता.
आपको बता दें की यह सुरंग 853 करोड़ रुपए की लागत से तैयार की जाएगी. सुरंग के निर्माण का जिम्मा राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआइडीसीएल) को दिया गया है. एनएचआइडीसीएल के महाप्रबंधक कर्नल दीपक पाटिल ने बताया कि फिलहाल ऋषिकेश से यमुनोत्री तक के सफर में आठ घंटे लगते हैं, लेकिन सुरंग बनने के बाद यह यात्रा की अवधि 45 मिनट कम हो जाएगी. यह प्रदेश की सबसे लंबी सुरग होगी. सुरंग का निर्माम मार्च 2024 तक पूरा होने की उम्मीद जताई जा रही है. कर्नल दीपक पाटिल ने बताया कि सुरंग निर्माण में न्यू आस्ट्रियन टनलिग मेथड का इस्तेमाल किया जाएगा, जो कि सुरंग बनाने की विश्व प्रचलित पद्धति है. इसमें चट्टान तोडऩे के लिए ड्रिलिंग और ब्लाटिंग दोनों की जाती है.