उत्तराखंड के चमोली जिले में माणा क्षेत्र में 28 फरवरी को हुए हिमस्खलन के बाद सर्च और रेस्क्यू अभियान पूरा कर लिया गया है। इस आपदा में कुल 54 श्रमिक प्रभावित हुए, जिनमें से 46 को सुरक्षित बचा लिया गया, जबकि 8 श्रमिकों की जान चली गई। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस अभियान में शामिल भारतीय सेना, आईटीबीपी, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, बीआरओ, पुलिस, जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की टीमों के अदम्य साहस और समर्पण की सराहना की। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह लगातार इस अभियान की जानकारी लेते रहे।
रेस्क्यू ऑपरेशन की प्रमुख घटनाएं
हिमस्खलन के तुरंत बाद राहत एवं बचाव कार्य युद्धस्तर पर शुरू किया गया। प्रारंभिक रिपोर्ट में 55 श्रमिकों के फंसे होने की सूचना थी, लेकिन बाद में यह संख्या 54 पाई गई। 46 श्रमिकों को सुरक्षित निकाला गया, जबकि 8 के शव बरामद किए गए। 44 श्रमिकों को ज्योतिर्मठ स्थित सेना के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनकी स्थिति सामान्य बताई गई, जबकि दो का इलाज एम्स ऋषिकेश में जारी है।रेस्क्यू अभियान में उन्नत तकनीकों का उपयोग किया गया। GPR (ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार), थर्मल इमेजिंग कैमरा, विक्टिम लोकेटिंग कैमरा, एवलांच रॉड और डॉग स्क्वाड की मदद से फंसे श्रमिकों की तलाश की गई। वायुसेना के एमआई-17 हेलीकॉप्टर, तीन चीता हेलीकॉप्टर और राज्य सरकार के दो हेलीकॉप्टरों ने भी राहत एवं बचाव कार्य में सहयोग किया।भविष्य में सुरक्षा उपायों पर जोर
मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार हिमस्खलन जैसी आपदाओं की रोकथाम और पूर्व चेतावनी प्रणाली को मजबूत करने के लिए प्रयासरत है। हिमालयी क्षेत्रों में हिमस्खलन की निगरानी के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग किया जाएगा ताकि भविष्य में ऐसे हादसों को रोका जा सके। उन्होंने यह भी आश्वस्त किया कि घायलों के इलाज का पूरा खर्च राज्य सरकार वहन करेगी और मृतकों के परिवारों को हर संभव सहायता प्रदान की जाएगी।
भारत हिमालयी क्षेत्र में आपदा प्रबंधन को लेकर सक्रिय कदम उठा रहा है, वहीं वैश्विक स्तर पर युद्ध और कूटनीतिक तनाव नई चुनौतियां खड़ी कर रहे हैं। माणा हिमस्खलन राहत अभियान ने दिखाया कि किस तरह विभिन्न एजेंसियों के समन्वय से जान बचाई जा सकती है। इसी तरह, वैश्विक स्तर पर भी शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए देशों को मिलकर काम करने की जरूरत है।