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जोशीमठ का 35 प्रतिशत हिस्सा हाई रिस्क जोन, नगरवासियों ने बाहर बसने से किया साफ इनकार

जोशीमठ का 35 प्रतिशत हिस्सा हाई रिस्क जोन में शामिल है. इस हिस्से को खाली करना जरूरी है. इस 35 प्रतिशत हिस्से में नगर के सभी 9 वार्डों में से कुछ जगहों को चिह्नित किया गया है.

पिछले 1 वर्ष से दरारों से जूझ रहे उत्तराखंड के जोशीमठ में लोगों की टेंशन एक बार फिर बढ़ गई है. बीती 20 जनवरी को आपदा प्रबंधन के सचिव रणजीत सिन्हा ने जोशीमठ पहुंचकर यहां के जनप्रतिनिधियों और स्थानीय लोगों के साथ एक जनसुनवाई की. इस दौरान उन्होंने बीते दिनों हुए जोशीमठ के भूगर्भीय सर्वेक्षण की कुछ रिपोर्ट लोगों के सामने रखी. ये बताया कि जोशीमठ का 35 प्रतिशत हिस्सा हाई रिस्क जोन में शामिल है. इस हिस्से को खाली करना जरूरी है. इस 35 प्रतिशत हिस्से में नगर के सभी 9 वार्डों में से कुछ जगहों को चिह्नित किया गया है. इस जनसुनवाई के दौरान उन्होंने जोशीमठ के स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों के सामने जोशीमठ से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बमोथ नामक जगह पर विस्थापित होने का विकल्प रखा. प्रशासन और धामी सरकार के इस विकल्प को स्थानीय लोगों ने नकार दिया. स्थानीय लोगों का मानना है कि वहां विस्थापित होकर उनका जीवन संभव नहीं हो सकेगा, क्योंकि उन्हें खाली रहने के लिए मकान नहीं बल्कि खाने कमाने के लिए रोजगार की भी आवश्यकता है. सभी के रोजगार वर्षों से जोशीमठ में संचालित हो रहे हैं तो उनके लिए जोशीमठ छोड़ना आसान नहीं है. 20 जनवरी को हुई इस जनसुनवाई के दौरान जोशीमठ के लोगों ने तो इस विस्थापन को नकार ही दिया है. 

अब बुधवार को बमोथ गांव के ग्रामीणों ने डीएम चमोली को एक पत्र जारी कर कहा कि वह जोशीमठ के लोगों को यहां बसने नहीं देंगे. ग्रामीणों का साफ तौर पर कहना है कि इस विस्थापन नीति को तैयार करने से पहले उन्हें शासन स्तर से कोई जानकारी नहीं दी गई. वो विस्थापन का सीधे तौर पर विरोध करते हैं. वह नहीं चाहते कि उनके गांव में कोई अन्य बसावट की जाए. जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के नेता अतुल सती के मुताबिक समिति ने इस जनसुनवाई के दौरान सचिव आपदा प्रबंधन के समक्ष कुछ बिंदु रखे हैं. इनमें जोशीमठ के इर्द-गिर्द जोशीमठ के लोगों को बसाने और इस नगर का ट्रीटमेंट करने जैसे बिंदु सुझाए गए हैं. अतुल सती कहते हैं कि जोशीमठ के लोगों की पुश्तैनी जमीन पर सेना के कब्जे में है. वो जमीन जोशीमठ के लोगों को वापस दे दी जाए तो विस्थापन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. उन्होंने कहा कि सन 1962 के दौरान जब सेना की जोशीमठ में बसावट शुरू हुई तो सेना ने बहुत सी जमीनों पर कब्जा किया. इन जमीनों का यहां के लोगों को मुआवजा तक नहीं मिला है. उन्होंने कहा कि अब उन्हें मुआवजा भी नहीं चाहिए, बस सेना से उनकी जमीन वापस दिलवाई जाए.

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