उत्तराखंड

उत्तराखंड का पांडवसेरा..जहां पांडवों द्वारा उगाई गई धान आज भी अपने आप उगती है

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग मदमहेश्वर-नन्दीकुंड के रास्ते में 25 किलोमीटर पैदल चलने के बाद एक जगह है पांडव सेरा, कहा जाता है कि आज भी इस जगह पर पांडवों के अस्त्र शस्त्र पाए जाते हैं.

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग मदमहेश्वर-नन्दीकुंड के रास्ते में 25 किलोमीटर पैदल चलने के बाद एक जगह है पांडव सेरा, कहा जाता है कि आज भी इस जगह पर पांडवों के अस्त्र शस्त्र पाए जाते हैं. अगर आप यहां से गुजरें और लोगों से पुछें तो आपको सबकी जुबान पर पांडवों के रहने की कहानी मिलेगी. कहा जाता है कि इस जगह पर पांडवों की ओर से रोपे गए धान की फसल आज भी अपने आप उगती है. यहां पांडवों द्वारा निर्मित सिंचाई गूल आज भी पांडवों के हिमालय आने के सबूत मिलते हैं. कहा यह भी जाता है कि पांडवसेरा में एक मंदिर है इस मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं हैं लोक मान्यताओं के अनुसार केदारनाथ धाम में पांचों पांडवों को भगवान शंकर के बैल रूपी पृष्ठ भाग के दर्शन हुए. पांचों पांडव यहीं से द्रौपदी सहित मदमहेश्वर धाम होते हुए मोक्षधाम बदरीनाथ गए थे. 

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मदमहेश्वर धाम में पांचों पाण्डवों के अपने पूर्वजों के तर्पण करने के साक्ष्य आज भी एक शिला पर मौजूद हैं. मदमहेश्वर धाम से बद्रीकाश्रम गमन करने पर पांचों पाण्डवों ने कुछ समय पाण्डव सेरा में प्रवास किया तो यह स्थान पाण्डव सेरा के नाम से विख्यात हुआ. पाण्डव सेरा में आज भी पाण्डवों के अस्त्र-शस्त्र पूजे जाते हैं तथा पाण्डवों द्वारा सिंचित धान की फसल आज भी अपने आप उगती है और पकने के बाद धरती के आंचल में समा जाती है. मान्यता यह भी है कि पाण्डव सेरा से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित नन्दीकुण्ड में स्नान करने से मानव का अन्तः करण शुद्ध हो जाता है. अगर आप भी पौराणिक और ऐतिहासिक जगहों में रुचि रखते हैं तो रुद्रप्रयाग के इस मंदिर को अपनी लिस्ट में जरूर शामिल कर लीजिए.

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