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उत्तराखंड में यहां है “भटके हुए देवता” का मंदिर, भक्त करते हैं अंत:करण में झांकने का अभ्यास

हरिद्वार में युगतीर्थ शांतिकुंज में माँ गायत्री का प्रसिद्ध मंदिर है और इसी मंदिर प्रांगण में स्थित है भटके हुए देवता का मंदिर. गायत्री मंदिर के पश्चिम दिशा की ओर स्थित इस मंदिर के बाहर लिखा है “भटका हुआ देवता”.

भटके हुए लोगों को हम अक्सर देवालय और भगवान् की शरण में ले जाने की बात करते हैं या परामर्श देते हैं लेकिन क्या आपने सोचा है कि अगर देवता ही भटक जाये तो क्या होगा? क्यों, चक्कर खा गए न? जी हां , लेकिन ये हकीकत है और भटके हुए देवता का मंदिर भी है और वह भी भारत में ही अब आपके मन में ये उत्सुकता हो रही होगी कि ये मंदिर आखिर है कहाँ तो चलिए आपकी जिज्ञासा को शांत कर देते हैं हम. यह मंदिर है देवों की नगरी हरिद्वार में है. युगतीर्थ शांतिकुंज में माँ गायत्री का प्रसिद्ध मंदिर है और इसी मंदिर प्रांगण में स्थित है भटके हुए देवता का मंदिर. गायत्री मंदिर के पश्चिम दिशा की ओर स्थित इस मंदिर के बाहर लिखा है “भटका हुआ देवता”.भटका हुआ देवता का बोर्ड देखते ही सबकी नजरें इस भटके हुए देवता को खोजने के लिए व्याकुल हो उठती हैं. पर्यटक यहाँ आकर भटका हुआ देवता की तस्वीर या मूर्ति को खोजने की कोशिश करते हैं लेकिन घंटों खोजने के बाद भी लोगों को भटके हुए देव के दर्शन नहीं होते क्योंकि भटका हुआ देवता कोई और ही है.

लोगों के दिमाग में यह बात रह रह कर आती है कि आखिर कहाँ हैं ये देव ? क्योंकि यहाँ किसी भगवान की मूर्ति या तस्वीर है ही नहीं ,अगर है तो बस पांच बड़े बड़े आइने (कांच) लगे हैं और उनमें आत्मबोध, तत्वबोध कराने वाले वेद-उपनिषदों के मंत्र लिखे हैं. चारों वेदों के चार महावाक्य जो जीव-ब्रह्म की एकता को बताते हैं, यहां उल्लिखित हैं. साधक यहां आकर सोऽहं से अहम् या आत्मब्रह्म तक के सूत्रों को धारण करते हैं. कहते हैं यहां आकर साधकों में आत्मबोध की अनुभूति होती है. यहां दर्पण के सामने खड़े होकर स्वयं के स्वरूप को निहार कर अन्तःकरण की गहराई में झांकने का अभ्यास सतत करते रहना चाहिए. आपको बता दें की इन शब्दों का अर्थ भी पास लगे बोर्ड पर लिखा हुआ है. जब इन दर्पणों को देखने पर खुद का चेहरा दिखता है तब पता चलता है कि ये खोया हुआ देवता कोई और नहीं बल्कि हम इंसान ही है. अब सवाल ये उठता है कि इंसान की तुलना देवता से कैसे की जा सकती है. तो इसका उत्तर बहुत ही सरल और सीधा है. मनुष्य भगवान की संतान है, अतः भगवान की संतान भगवान ही तो होगी न, इसलिए इंसान भी भगवान अर्थात देवता ही है.

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