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आस्था-विश्वास का अनूठा संगम है केदारनाथ धाम, पांडवों को मिला था शिव का आशीर्वाद, जानिए यहाँ की अनोखी मान्यताएं

बाढ़ की ऐतिहासिक घटनाओं व कहानियों को समेटे हुए ये केदारनाथ मंदिर आज देशभर के श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध है. कहते हैं कि केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था.

देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारनाथ धाम की अनोखी कहानी है. इस मंदिर और इसके शिवलिंग को लेकर कई बातें प्रचिलत हैं जो हैरान करने वाली हैं. बाढ़ की ऐतिहासिक घटनाओं व कहानियों को समेटे हुए ये केदारनाथ मंदिर आज देशभर के श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध है. कहते हैं कि केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था. पुराणों के अनुसार केदार महिष अर्थात बैल का पिछला अंग (भाग) है. यहां भगवान शिव भूमि में समा गए थे. आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में. ‘स्कंद पुराण’ में भगवान शंकर माता पार्वती से कहते हैं, ‘हे प्राणेश्वरी! यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं. मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया, तभी से यह स्थान मेरा चिर-परिचित आवास है. यह केदारखंड मेरा चिरनिवास होने के कारण भू-स्वर्ग के समान है.’ केदारखंड में उल्लेख है, ‘अकृत्वा दर्शनम् वैश्वय केदारस्याघनाशिन:, यो गच्छेद् बदरी तस्य यात्रा निष्फलताम् व्रजेत्’ अर्थात् बिना केदारनाथ भगवान के दर्शन किए यदि कोई बदरीनाथ क्षेत्र की यात्रा करता है तो उसकी यात्रा व्यर्थ हो जाती है.

पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे. इसलिए भगवान शंकर अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे. पांडव उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए. भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले. अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया. अन्य सब गाय-बैल और भैंसे तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए. भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा. तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया. भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देखकर प्रसन्न हो गए. उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया. उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं.

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क्यों पड़ा केदारनाथ नाम-

दरअसल, इसकी कहानी भी भगवान शिव के रूप से जुड़ी हुई है. पौराणिक कथाओं के अनुसार असुरों से बचने के लिए देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की थी. इसी कारण भगवान शिव बैल के रूप में अवतरित हुए. इस बैल का नाम था ‘कोडारम’ जो असुरों का विनाश करने की ताकत रखता था. इसी बैल के सींग और खुरों से असुरों का सर्वनाश हुआ था जिन्हें भगवान शिव ने मंदाकिनी नदी में फेंक दिया था. उसी कोडारम नाम से लिया गया है केदारनाथ. 

400 सालों तक बर्फ के अंदर दबा रहा था ये मंदिर-

ये कोई पौराणिक कथा नहीं बल्कि वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून के द्वारा रिसर्च किया हुआ फैक्ट है. इस इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार केदारनाथ मंदिर 13-14 वीं सदी के बीच जो छोटा हिमयुग आया था उसमें पूरी तरह से बर्फ में दबा रहा था. वैज्ञानिकों ने ये तथ्य इस आधार पर निकाला था कि मंदिर के ढांचे में कई पीली रेखाएं बनी हुई हैं. ये रेखाएं इसलिए बनी हैं क्योंकि ग्लेशियर से पिघलती हुई बर्फ धीरे-धीरे पत्थरों से रिसती रही हो. ग्लेशियर बहुत धीरे-धीरे अपना रूप बदलते हैं और सिर्फ बर्फ से नहीं बल्कि पत्थर और मिट्टी से भी बने होते हैं. ऐसे में ये अंदाज़ा लगाया गया कि केदारनाथ मंदिर ने न सिर्फ 400 सालों तक बर्फ के अंदर का दबाव झेला बल्कि इसने ग्लेशियर का मूवमेंट और 2013 की बाढ़ भी झेली.

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