उत्तराखंड

उत्तराखंड में परियों का ताल..यहां पूर्णिमा की रात आती हैं परियां, क्‍या आपने देखा है ये रहस्यमयी ताल

उत्तराखंड के नैनीताल जिले को भारत का ‘लेक डिस्ट्रिक्ट’ कहा गया है. माना जाता है कि इस जिले में कभी 60 झीलें हुआ करती थीं .

हमारे देश में कल्पना और चमत्कार का बहुत विस्तार रहा है. परियों की कहानियां हमें आज भी खूब लुभाती हैं. आमतौर पर परियां सिर्फ हमारी कल्पनाओं का हिस्सा रही हैं, लेकिन उत्तराखंड में ऐसी कई जगहें हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वहां परियां बसती हैं. टिहरी का खैट पर्वत परीलोक के रूप में पूरी दुनिया में मशहूर है, लेकिन आज हम आपको नैनीताल के परी ताल के बारे में बताएंगे. आपको बता दें की उत्तराखंड के नैनीताल जिले को भारत का ‘लेक डिस्ट्रिक्ट’ कहा गया है. माना जाता है कि इस जिले में कभी 60 झीलें हुआ करती थीं, लेकिन आज केवल नैनीझील, भीमताल, नौकुचियाताल, हनुमान ताल, सीताताल, कमलताल जैसी कुछ झीलों से ही लोग परिचित हैं. आज हम आपको नैनीताल जिले के एक ऐसे ही ताल के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे परी ताल  कहा जाता है. इस झील के बारे में कम ही लोग जानते हैं. कहा जाता है कि यहां परियां नहाने आती हैं, जिस वजह से इसे यह नाम मिला है.

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ये जगह इतनी खूबसूरत है कि आप सचमुच यहां आकर अपना दिल हार बैठेंगे. परी ताल जाने के लिए भवाली-भीमताल के बीच खुटानी से मुक्तेश्वर की ओर जाना पड़ता है. यहां चांफी नाम की जगह से पैदल रास्ता है. ये जगह नैनीताल से करीब 23 किलोमीटर दूर है. चांफी से पैदल चलते वक्त दो नदियों को पार करना पड़ता है. कई लोगों ने यहां परियों को देखने का दावा भी किया है. स्थानीय लोग आमतौर पर परी ताल से दूर ही रहते हैं. दरअसल इस ताल में पानी अत्यधिक गहरा है, हो सकता है लोगों को ताल में उतरने से रोकने के लिए परियों द्वारा हर ले जाने की दंतकथा गढ़ी गई हो. जो भी हो परी ताल है बहुत खूबसूरत. यूट्यूब पर ताल की खूबसूरती को बयां करते कई वीडियो देखे जा सकते हैं. सुरम्य वादियों से घिरा ये ताल सचमुच परीलोक में होने का अहसास कराता है.

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