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कार्तिक स्वामी : उत्तर भारत का ऐसा मंदिर, जहाँ होती है शिव के दूसरे बेटे की पूजा

उत्तराखंड में यूँ तो अनेकों मंदिर स्थापित हैं लेकिन उत्तराखंड के मंदिर Uttarakhand Temple और सिद्ध पीठों में से एक कार्तिक स्वामी कुछ अलग है. जी हाँ आपने भगवान शिव के मंदिर और उनके पुत्र गणेश के तो बहुत मंदिर देखे होंगे. लेकिन क्या आपको पता है कि उत्तर भारत में भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय का भी एक मात्र मंदिर है. दक्षिण भारत में इसे मरुगन भी कहते हैं. भगवान कार्तिकेय का यह मंदिर उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले स्थित पोखरी रोड पर मौजूद है. कार्तिक स्वामी Kartik Swami नाम के विख्यात यह मंदिर समुद्रतल से 3048 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है जहाँ से मौसम साफ होने पर हिमालय की तमाम चोटियों को दीदार किया जा सकता है.

ये है मंदिर की पौराणिक कथा

कार्तिक स्वामी मंदिर Kartik Swami Temple के बारे में पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों को भगवान कार्तिक और भगवान गणेश से यह कहा कि उनमें से एक को पहले पूजा करने का विशेषाधिकार प्राप्त होगा, जो सर्वप्रथम ब्रह्मांड का परिक्रमा ( चक्कर ) लगाकर उनके सामने आएगा . भगवान कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर विश्व परिक्रमा को निकल पड़े . जबकि गणेश गंगा स्नान कर माता-पिता की परिक्रमा करने लगे. गणेश को परिक्रमा करते देख शिव-पार्वती ने पूछा कि वे विश्व की जगह उनकी परिक्रमा क्यों कर रहे हैं तो गणेश ने उत्तर दिया कि माता-पिता में ही पूरा संसार समाहित है.  यह बात सुनकर शिव-पार्वती खुश हुए और भगवान गणेश को पहले पूजा करने का विशेषाधिकार प्राप्त दिया.  इधर विश्व भ्रमण कर लौटते समय कार्तिकेय को देवर्षि नारद ने पूरी बातें बताई तो , कार्तिकेय नाराज हो गए और कैलाश पहुंचकर उन्होंने अपना मांस माता पार्वती को और शरीर की हड्डिया पिता ह्सिव जी को सौंप निर्वाण रूप में तपस्या के लिए क्रौंच पर्वत पर पहुँच गए. तब से भगवान कार्तिकेय इस स्थान पर पूजा होती है और यह माना जाता है कि ये हड्डियाँ अभी भी मंदिर में मौजूद हैं जिन्हें हज़ारों भक्त पूजते हैं.

मंदिर के पास 360 रहस्यमई जलकुंड

लोक मान्यताओं के अनुसार इस भण्डार से एक मार्ग कुबेर पर्वत को जाता है. युगों पूर्व इस भण्डार के दर्शन भगवान कार्तिक स्वामी के दो परम उपासक ही कर पाये थे. बीहड़ चट्टानों के मध्य इस भण्डार में भगवान कार्तिक स्वामी के अनमोल बर्तन होने की मान्यता है. इस तीर्थ के चारों तरफ 360 गुफाओं के साथ 360 जलकुंड भी हैं. क्रौंच पर्वत तीर्थ से लगभग तीन किमी दूर तथा प्रकृति की सुन्दर छाव में बसा उसनतोली बुग्याल के निकट बीहड़ चट्टान के मध्य भगवान कार्तिक स्वामी के प्राचीन भण्डार की अपनी विशिष्ट पहचान है.

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असंख्य धातुओं का भंडार

स्थानीय लोक मतानुसार आज से लगभग सौ वर्ष पूर्व उसनतोली बुग्याल में एक पशुपालक रहता था, वह हमेशा भगवान कार्तिक स्वामी की भक्ति में समर्पित रहता था. एक दिन भगवान कार्तिक स्वामी उसकी भक्ति ने प्रसन्न होकर स्वप्न में प्राचीन भण्डार के दर्शन करवाये.  स्थानीय मतानुसार पूर्व में जब भगवान कार्तिक स्वामी की देवता पूजा करते थे, तो इस भण्डार से तांबे के वर्तन निकाल कर अनेक पकवान बनाये जाते थे. तथा पकवान बनाने के बाद पुनः बर्तनों को भण्डार में रखा जाता था. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस प्राचीन भण्डार में असंख्य धातुओं का भण्डार है, जिसका अनुमान आज तक नहीं लगाया जा सका.

ऐसे पहुचें कार्तिक स्वामी

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले Rudraprayag से 38 किलोमीटर की दूरी पर कनक चौरी गाँव में स्थित है कार्तिक स्वामी मंदिर. भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय को समर्पित इस मंदिर तक कनक चौरी गाँव से 3 किलोमीटर पैदल एक सुंदर कच्चे ट्रैक से होते हुए पहुँचा जा सकता है. इस ट्रैक के दोनों ओर खूबसूरत बाँज के जंगल, बुराँश के पेड़ व पक्षियों का कलरव आपकी यात्रा में इतनी सुगमता व मनोरमता भर देता है कि पता ही नहीं चलता कब आप हिमालय की गोद में स्थित क्रौंच पर्वत पर बसे इस मंदिर के आहाते तक पहुँच जाते हैं.

सालभर खुला रहता है मंदिर

यह मंदिर बारह महीने अपने भक्तों के लिए खुला रहता है. अधिक ऊँचाई पर होने के कारण गर्मियों में यहाँ का मौसम सुहावना व सर्दियों में बर्फ लिए रहता है. मंदिर के आहाते से हजारों फुट नीचे घाटी में देखने पर सुंदर गाँव दिखाई पड़ते हैं जिन्हें देख ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने कोई सुंदर सा पोर्ट्रेट बनाकर घाटी में छोड़ दिया हो. मौसम की एक करवट बदलते ही सारे बादल घाटी में तैरने लगते हैं और जैसे ही बादल छँटते हैं सूर्य की किरणों तले धवल पर्वत श्रेणियाँ चमक उठती हैं. प्रकृति का यह नजारा कार्तिक स्वामी मंदिर से 360 डिग्री का ऐसा दृश्य देता है जो आपको एक अद्भुत अनुभव व रोमांच से भर देता है. यहाँ से चौखंबा, मद्यमहेश्वर Madhmaheswar, केदार पर्वत, मेरु-सुमेरु पर्वत, त्रिशूल Trishul Peak, पंचाचूली, नीलकंठ, नंदा देवी, कामेट, नंदाघुंटी, रुद्रनाथ, दूनागिरी, कौसानी आदि का चौतरफा खूबसूरत नजारा देखते ही बनता है. कहते हैं इस मंदिर से हिमालय की लगभग 80 प्रतिशत चोटियाँ साफ नजर आती हैं.

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