उत्तराखंड सरकार और Uttarakhand Forest Department ने राज्य के विभिन्न वन प्रभागों को मानव-वन्यजीव संघर्ष (Human-Wildlife Conflict) दृष्टिगत “जोखिम-क्षेत्र (danger zones)” के रूप में चिह्नित किया है। इन क्षेत्रों में अब अतिरिक्त सतर्कता, निगरानी और सुरक्षा उपायों के निर्देश दिए गए हैं।
क्यों बनी यह ज़रूरत
पिछले वर्षों में राज्य में वन्यजीवों — बाघ, तेंदुआ, हाथी, भालू, जंगली सूअर, सांप आदि — से जुड़ी झड़पों में तेजी आई है। वर्ष 2000 से सितंबर 2025 तक हुए संघर्षों में कम-से-कम 1256 लोग मारे जा चुके हैं और करीब 6433 घायल हुए हैं। यह लगातार बढ़ते मामलों ने विभाग को सक्रियता दिखाने पर मजबूर कर दिया।
क्या है नया — “डेंजर ज़ोन” निर्धारित
वन विभाग ने संवेदनशील इलाकों — विशेषकर जंगलों के पास बसे गांव, कृषि भूमि, मार्ग एवं मानव आवास के करीब — को मानचित्रित कर “डेंजर ज़ोन” घोषित किया है। इन इलाकों में गश्त बढ़ाई जाएगी, चेतावनी बोर्ड लगाए जाएंगे, और ग्रामीणों एवं पर्यटकों को सावधान रहने की सूचना दी जाएगी। विभाग का कहना है कि इससे किसी भी अप्रिय घटना से पहले रोकथाम संभव हो सकेगी।
राज्य सरकार का रवैया और मुआवजा प्रावधान
सरकार ने घातक वन्य जीव हमलों की स्थिति में मुआवजे की राशि 6 लाख रुपये से बढ़ाकर 10 लाख रुपये कर दी है। इसके साथ ही घायलों के उपचार का पूरा खर्च भी राज्य शासन वहन करेगा।
क्या कहते विशेषज्ञ
वन्यजीव विशेषज्ञों व विभागीय अफसरों का कहना है कि अकेले मुआवजा ही पर्याप्त नहीं — गहन वैज्ञानिक प्रबंधन, निगरानी और सामुदायिक सहयोग चाहिए। पुश्तैनी जंगलों में मानव-विस्तार, पर्यावरणीय बदलाव, आवास-ह्रास, शिकार के बढ़ते दबाव ने वन्यजीवों को मानव क्षेत्र की ओर धकेल दिया है।
नागरिकों से अपील और अगला कदम
वन विभाग व राज्य सरकार संयुक्त रूप से ग्रामीणों, जंगल के किनारे बसे लोगों एवं पर्यटकों से आग्रह कर रही है कि वे सावधानी बरतें — रात में अकेले जंगल में न जाएँ, पशुधन को सुरक्षित रखें, व अनुमति के बिना जंगलों में प्रवेश न करें। साथ ही विभाग ने स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर “Forest Division Days” नामक सलाह-मंच आयोजित करने का निर्णय लिया है, ताकि भागीदारों की प्रतिक्रिया मिल सके और सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाया जा सके।
















