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60 साल बाद गुलजार हुआ उत्तराखंड का मिनी लद्दाख, जहाँ से शुरू होता है तिब्बत का रास्ता | inbox Uttarakhand

अगर आप लेह लद्दाख Laddkh जाने की चाह रखते हैं और आप किसी कारण वश नहीं जा पा रहे हैं तो चिंता करने की कोई बात नहीं है. उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में आपके मन की यह हसरत पूरी हो जाएगी, जी हाँ इसे मिनी लद्दाख Mini Laddkh भी कहा जाता है. जिसका नाम है नेलोंग वैली, समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी की नेलांग घाटी Nelong Valley में भारत-तिब्बत सीमा Indo-Tibbet Border से सटे जादुंग गांव आकर आपको इंसान की कारीगरी और हिम्मत की मिसाल देश के किसी भी हिस्से में देखने को नहीं मिलेगी.
उत्तराखंड Uttarakhand के उत्तरकाशी जिले Uttarkashi में नेलांग घाटी की गरतांग गली Gartang Gali दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शुमार है. नेलांग घाटी इनरलाइन एरिया है, जो कि भारत-चीन के बॉर्डर के पास है. यहां पर्यटकों को केवल दिन में ही जाने की अनुमति दी जाती है. 1962 में भारत-चीन युद्ध से पहले नेलांग घाटी का जादुंग एक आबाद गांव हुआ करता था. इस गांव में रहने वाली जाड़ जनजाति छः महीने यहां आकर ठहरती है. इस युद्ध के बाद नेलांग घाटी पर्यटकों के लिये हमेशा के लिये बंद कर दी गयी थी, जिसे कुछ ही सालों पहले खोला गया है.

नेलांग जाने वाले रास्ते पर सबसे रोमांचक गरतांग गली है. जिसका इस्तेमाल प पुराने समय में जाड़गंगा को पार करने में किया जाता था. वर्तमान में इसे काम में नही लिया जाता है, इसके बावजूद पठारों के बीच बना यह ब्रिज आज भी पर्यटकों के लिये आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

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इसके बारे में ऐसा कहा जाता है कि करीब 300 मीटर लंबे इस रास्ते को 17वीं सदी में पेशावर से आए पठानों ने चट्टान को काटकर बनाया था. जिसके जरिए भारत और चीन के बीच व्यापार भी होता था. गरतांग गली के जरिए ऊन, चमड़े से बने कपड़े और नमक लेकर तिब्बत से बाड़ाहाट (उत्तरकाशी) पहुंचाया जाता था. उस समय दूर दूर से लोग बाड़ाहाट आते थे और सामान खरीदते थे. भारत-चीन युद्ध के बाद 1975 में सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल बंद कर दिया था. 2017 में विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर उत्तराखंड सरकार की ओर से पर्यटकों को गरतांग गली जाने की अनुमति दी गई.

अगर आप ट्रैकिंग के शौकिन हैं, तो आप इस जगह पर ट्रैकिंग के लिए जा सकते हो. यहां जोखिम भरे रास्तों को देखकर आखिर किस तरह से इस रास्ते को बनाया गया होगा. पहाड़ों को चीर कर लकड़ी के बने रास्ते से गुजरना अपने आप में एक अलग ही एहसास होता है. नेलांग से आगे जादुंग और उससे भी आगे नीलापानी पड़ता है. नेलांग से आगे सिविलियन को विशेष अनुमति पर ही आगे जाने दिया जाता है. इस जगह पर अब सेना और आई.टी.बी.पी. के जवानों के अलावा कोई नहीं रहता है.

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Priyank Mohan Vashisht 

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