वैसे तो हम उत्तराखंड की संस्कृति को बचाने की खूब बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, मगर क्या वाकई हम उसे बचा पा रहे हैं? क्या हम पहाड़ों से शहरों की तरफ पलायन करने के साथ-साथ अपनी बोली और संस्कृति को भी भूलते जा रहे हैं? या हमें शहर की चकाचौंध, दिखावे वाली ज़िंदगी इतनी पसन्द आ गई है कि हम गढ़वाली या कुमाऊनी को बोलने में हिचकते हैं. मगर इन तमाम आरोप-प्रत्यारोप के बीच एक बेहतरीन पहल की शुरुआत हुई है जिसके बाद उम्मीद लगाई जा सकती है कि लोग वापिस अपनी संस्कृति और अपनी मृदुल बोली की ओर आएंगे. देवभूमि उत्तराखंड की बोली भी उतनी ही मीठी और मधुर है जितने यहां के लोग. दरअसल सोशल मीडिया में एक शादी का कार्ड वायरल हो रहा है जो कि पूरी तरह से गढ़वाली बोली में छपवाया गया है और जो सोशल मीडिया पर खूब प्रशंसा बटोर रहा है.
नरेंद्रनगर के काकडासारी गाव के भवानी दत्त तिवारी की बेटी की शादी 15 जनवरी को है. उनकी बेटी अर्चना की शादी कमांद के सुमन सिलस्वाल से होनी है. बेटी की शादी में मेहमानों को आमंत्रित करने के लिए उन्होंने गढ़वाली भाषा में निमंत्रण छापा है. कार्ड में गढ़वाली भाषा को बचाने के लिए अपणी भाषा अपणी पैछाण, ब्यो कू न्यूतु जैसे कई शब्दों का प्रयोग किया है, जो लोगों के लिए आकर्षण और शिक्षाप्रद बना हुआ है. भवानी दत्त तिवारी बताते हैं कि हम चाहे जहां भी रहे, लेकिन अपनी संस्कृति और संस्कार कभी भूलने नहीं चाहिए. अपनी भाषा के सरक्षण व इसको सदैव जीवंत बनाए रखने के लिए हम सभी का कर्तव्य है हमें अपने कर्तव्य के प्रति हमेशा जागरुक रहने की जरूरत है. कहा कि वह अपनी गढ़वाली भाषा ओर गढ़वाली की मिटटी से ही जुड़े हैं.