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पर्यावरण के साथ पर्व: पिरूल से बनी राखियाँ बन रहीं आजीविका का साधन

रुद्रप्रयाग।
उत्तराखंड की वादियों में बसे छोटे-से गांव जवाड़ी की महिलाएं आज आत्मनिर्भरता और नवाचार की एक नई कहानी लिख रही हैं। हिमाद्री स्वयं सहायता समूह और जय रुद्रनाथ क्लस्टर लेवल फेडरेशन (CLF) की महिलाओं ने जंगल से मिलने वाली पिरूल (चीड़ की पत्तियों) का उपयोग कर खूबसूरत, पर्यावरण-संवेदनशील राखियाँ तैयार करनी शुरू की हैं।

इस प्रयास से न केवल स्थानीय महिलाओं को स्वरोजगार का साधन मिला है, बल्कि यह पहल पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक परंपराओं को जीवित रखने की दिशा में भी एक प्रेरणादायक कदम है।

प्रशिक्षण से नवाचार की ओर
ग्राम जवाड़ी की महिला गुड्डी देवी बताती हैं कि उन्हें पहले पिरूल से उत्पाद निर्माण का प्रशिक्षण मिला था, जिसे उन्होंने अब रक्षा बंधन पर्व पर रचनात्मक रूप से राखी निर्माण में ढाल दिया है। जंगल से एकत्र की गई पिरूल को पहले साफ किया जाता है, फिर सजावटी और सृजनात्मक रूप देकर सुंदर राखियों में तब्दील किया जाता है।

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स्थानीय बाजारों में शुरू हुई बिक्री
इन राखियों को अब स्थानीय बाजारों में बेचा जा रहा है और इन्हें एक “प्राकृतिक व पर्यावरण हितैषी उत्पाद” के रूप में सराहा जा रहा है। यह पहल “लोकल फॉर वोकल” को वास्तविक रूप में साकार कर रही है और गांव की महिलाओं को स्थायी आमदनी का माध्यम भी प्रदान कर रही है।

नवाचार, परंपरा और प्रकृति का संगम
पिरूल से राखियाँ बनाना महज एक हस्तशिल्प नहीं, बल्कि यह उत्तराखंड की महिलाओं द्वारा प्रकृति, परंपरा और नवाचार के अद्भुत संगम को प्रस्तुत करने वाला प्रयास है — जो आने वाले समय में अन्य गांवों के लिए भी प्रेरणा बन सकता है।

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