उत्तराखंड में ऐसी कई अनछुई जगहें हैं, जो आज तक सामने नहीं आ सकीं. शायद ये अच्छा ही है. इंसानी दखल ना होने की वजह से ही ये जगहें अपनी प्राकृतिक सुंदरता को बरकरार रख सकी हैं. वैसे तो उत्तराखंड की शांत वादियों की बात ही अलग है. यहां आपको नैचुरल ब्यूटी, सुकून और शांति के अलावा एक ऐसा अहसास भी मिलता है, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. हाल ही में रूद्रप्रयाग की मदमहेश्वर घाटी से लगभग 60 किमी दूर पनपतिया ग्लेशियर के निकट 16,500 फीट की ऊंचाई पर प्रकृति प्रेमियों ने एक नये ताल की खोज की है. अभी ताल को कोई नाम नहीं दिया गया है. युवा ट्रेकर गूगल अर्थ व पुराने नक्शों की मदद से ताल तक पहुंचे हैं जो बहुत ही सुंदर व भव्य है. यह ताल 160 मीटर लंबा व 155 मीटर चौड़ा है. इस अनाम ताल को खोजने में 6 सदस्यीय इस दल में गौंडार गांव के अभिषेक पंवार व आकाश पंवार, गिरीया गांव के दीपक पंवार, टिहरी-बडियागढ़ के विनय नेगी व ललित मोहन लिंगवाल और खंडाह-श्रीनगर के अरविंद रावत शामिल थे. आगे पढ़िए-

इस दल ने बेहद कठिन, जोखिम भरे इस अनाम ताल के बारे तक पहुंचने के लिए पूरी तैयारी की थी. गूगल अर्थ मैप का अध्ययन कर रूट तैयार किया. जिसके बाद इस दल नें मदमहेश्वर – धौला क्षेत्रपाल – कांचनीखाल वाला रूट चुना. विषम भौगोलिक परिस्थितियों का सामना करते हुये, दुर्गम, जोखिम भरे रास्ते से होकर पहाड, बुग्याल, पथरीले रास्ते, ग्लेशियरों को पार करने के उपरांत आखिरकार इन 6 युवाओं की जिद, जुनून और पहाड से हौंसले नें देश दुनिया को पहली बार हिमालय की अनमोल गुमनाम ताल का दीदार और साक्षात्कार करवाया. आज इन 6 युवाओं को हर कोई सैल्यूट कर रहा है. हो भी क्यों न, क्योंकि इन युवाओ ने एक नया इतिहास जो लिख दिया है. दल में शामिल गौण्डार निवासी आकाश पंवार ने बताया अज्ञात ताल तक पहुंचने के लिए दल को 6 दिन का समय लगा. 2 दिन का समय ग्लेशियरों में व्यतीत करना पड़ा. उन्होंने बताया अज्ञात ताल लगभग 16,500 फीट की ऊंचाई पर है. इस ताल की परिधि लगभग 1 किमी है.
दल में शामिल बडियारगढ़-टिहरी गढ़वाल निवासी विनय नेगी ने बताया कि अज्ञात ताल का पानी हरा होने के कारण ताल की गहराई अधिक होने का अनुमान लगाया जा सकता है. ताल में पत्थर डालने पर पानी के बुलबुले उठ रहे हैं. मनसूना गिरीया निवासी दीपक पंवार ने बताया ताल के चारों तरफ बीहड़ चट्टान हैं. चाल के चारों तरफ बुग्याल नहीं है. अत्यधिक ऊंचाई के कारण उस क्षेत्र में बर्फबारी अधिक समय तक रहती है. जिसके कारण यहां बुग्याल नहीं हैं. अभिषेक पंवार बताते हैं कि ताल तक पहुंचने के लिए अनुमान के अनुसार रास्ता तय करना पड़ा. अत्यधिक ऊंचाई और मोबाइल नेटवर्क नहीं होने के कारण गूगल से भी मदद नहीं ली जा सकती थी लेकिन हमने पूर्व में जो डिजीटल मैप बनाया था और गूगल अर्थ से जानकारी जुुटाई थी उसी का ध्यान करते हुए ताल तक पहुंचे.