उत्तराखंडटिहरी गढ़वाल

उत्तराखंड में यहां मछलियां पकड़ने नदी में उतरे हजारों ग्रामीण, देवभूमि की सांस्कृतिक धरोहर है ‘मौण’ परंपरा

उत्तराखंड के टिहरी में एक अनोखा राज मौण मेला आयोजित होता है. इस मेले में अगलाड़ नदी में टिमरु पावडर डालकर पहले मछलियों को बेहोश किया जाता है. जिसके बाद मछलियां पकड़ने हजारों लोग नदी में कूद जाते हैं.

उत्तराखंड के टिहरी में एक अनोखा राज मौण मेला आयोजित होता है. इस मेले में अगलाड़ नदी में टिमरु पावडर डालकर पहले मछलियों को बेहोश किया जाता है. जिसके बाद मछलियां पकड़ने हजारों लोग नदी में कूद जाते हैं. इस मौके पर स्थानीय लोग ढोल नगाड़ों की थाप पर जमकर लोकनृत्य भी करते हैं. जौनपुर में आयोजित मेले में जौनपुर, रंवाई घाटी समेत आसपास क्षेत्र के हजारों लोग शामिल होते हैं. सबसे पहले नदी के पास ढोल नगाड़ों के साथ ग्रामीण लोक गीतों के साथ पारंपरिक लोक नृत्य​करते हैं. फिर नदी में टिमरु पाउडर डाला जाता है. इसके बाद जाल लेकर लोग नदी में मछ​ली पकड़ने को कूद जाते हैं. 

दावा है कि इस दौरान सैकड़ों क्विंटंल मछलियां पकड़ी जाती हैं. जौनपुर क्षेत्र के करीब 16 गांवों के लोग मिलकर दो से तीन सप्ताह तक टिमरू पाउडर बनाते हैं स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परंपरा सालों से चली आ रही है. जो कि करीब 150 से भी ज्यादा साल से मनाते है दावा है कि मौण मेला 1866 में तत्कालीन टिहरी नरेश ने शुरू कराई जो कि लगातार जारी है. टिमरू पाउडर को ग्रामीण मछली पकड़ने को नदी में डालते हैं. इस पाउडर को करीब एक माह पहले से बनाना शुरू किया जाता है

पाउडर को प्राकृतिक जड़ी बूटी और औषधीय गुणों से भरपूर टिमरु के पौधे की तने की छाल को सुखाते है. छाल को ओखली या घराट में पीसकर पाउडर तैयार होता है. पाउडर को नदी में डालते ही मछलियां बेहोश हो जाती है. जिससे मछलियां मर जाती हैं. मेला मेले में सैकड़ों किलो मछलियां पकड़ी जाती है जिसे ग्रामीण प्रसाद स्वरूप घर ले जाते हैं और मेहमानों को परोसते हैं. मेला का उद्देश्य नदी और पर्यावरण का संरक्षण करना होता है साथ ही उद्देश्य नदी की सफाई करना होता है.

यह भी पढ़ें -  देहरादून में 8 और 9 अक्टूबर को होगा संजीवनी दीपावली मेले का आयोजन
Back to top button