जोशीमठ त्रासदी के बाद उत्तराखंड के कई हिस्सों से भयानक तस्वीरें सामने आ रही हैं. जोशीमठ ही नहीं उत्तराखंड में अलग-अलग हिस्सों में दरारें देखने को मिल रही है. ऋषिकेष से कुछ दूर, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, नैनीताल, उत्तरकाशी भी बड़ी दरारों से अछूते नहीं रह गए हैं. इन सभी जगहों की स्थिति भी डर है, आने वाले दिनों में जोशीमठ जैसी ना हो जाए. जोशीमठ में भू-धंसाव और मकानों में दरार की घटना के बाद अब तहसील बड़कोट के बाडिया गांव में भी दहशत का माहौल पैदा हो गया है. गांव के 35 से ज्यादा मकान और किसानों के ऐसे खेत हैं जहां मोटी-मोटी दरारें आ गई है और बिजली के पोल तिरछे हो गए हैं. दरअसल, बाडिया गांव भूस्खलन की जद में 2010 के बाद से आना शुरू हुआ और 2013 में करीब 35 मकान भू धसाव से मकानों में दरारें आनी शुरू हो गई. आलम यह है कि हल्की सी भी बारिश शुरू होने के बाद ग्रामीण दहशत के माहौल में आ जाते हैं. इतना ही नहीं ग्रामीणों ने अपनी उपजाऊ खेती भी पूरी तरह से छोड़ दी है. हालांकि रिवर साइट में प्रोटेक्शन वर्क से भू-धंसाव को कुछ हद तक रोका गया है लेकिन खतरा अभी भी बरकार है यानी जोशीमठ ही नहीं उत्तराखंड के एक बड़े इलाके पर इस वक्त अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि खतरे की जद में आने के बाद लगातार शासन से लेकर प्रशासन तक गांव के विस्थापन की मांग करते आ रहे हैं. लेकिन बार-बार उन्हें अनसुना कर दिया जाता है.
लेकिन हाल ही में जो जोशीमठ से घटना सामने आई है इसके बाद से अब ग्रामीण भी दहशत में हैं कि बाडिया गांव की तस्वीर इससे ज्यादा भयावह न हो. हैरानी वाली बात यह है कि उत्तराखंड को हर 10 साल के भीतर भीषण आपदा का सामना करना पड़ रहा है. साल 2003 में उत्तरकाशी के वरुणावत में दरारें पड़ीं. सितंबर 2003 में बिना बारिश के करीब एक माह तक जारी रहे वरुणावत भूस्खलन से उत्तरकाशी नगर में भारी तबाही मची थी. करीब 70 करोड़ की लागत से इस पहाड़ी के उपचार के बावजूद अक्सर बरसात में इस पहाड़ी से शहर क्षेत्र में पत्थर गिरने की घटनाएं होती रही हैं. साल 2013 में केदारनाथ में जलप्रलय आया, जिसमें 5 हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई. अब साल 2023 में जोशीमठ में जो हो रहा है, वो सबके सामने है. जमीन के धंसने से समूचा जोशीमठ धंस रहा है. सैकड़ों भवन रहने लायक नहीं बचे हैं. कई जगह जमीन पर भी चौड़ी दरारें उभरने लगी हैं. पिछले ही साल उत्तराखंड सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने भी जोशीमठ पर मंडराते खतरे की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित किया था. इन तमाम चेतावनियों के बाद जोशीमठ को बचाने के प्रयास नहीं हुए, बल्कि वहां भारी भरकम इमारतों का जंगल उगता गया. अब 20 से 25 हजार की आबादी वाला ये शहर अनियंत्रित विकास की भेंट चढ़ रहा है, शहर का अस्तित्व संकट में पड़ गया है.