देहरादून — उत्तराखंड सबऑर्डिनेट सर्विस सिलेक्शन कमीशन (UKSSSC) की सरकारी नौकरियों की भर्ती परीक्षा में पेपर लीक होने के आरोपों ने पिछले कुछ दिनों में पूरा प्रदेश उथल-पुथल कर रखी है। पुलिस की तफ्तीश में बड़े नाम सामने आने और आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद भी बेरोजगार अभ्यर्थियों का गुस्सा शांत नहीं हुआ। जिलों में प्रदर्शन, मुख्यालय में धरने और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ वाद-विवाद के बीच जांच को अब न्यायिक निगरानी में चलाने का ऐलान किया गया है।
गिरफ्तारियाँ, खोजबीन और जांच व्यवस्था
पुलिस ने जिस कुख्यात नकल नेटवर्क के सदस्य हाकम सिंह रावत और उसके साथी पंकज गौड़ को पहले हिरासत में लिया था, उसके बाद भी सोशल मीडिया पर परीक्षा के कुछ प्रश्नों के पन्ने परीक्षा के दौरान वायरल हो गए। एसएसपी देहरादून के निर्देश पर विशेष जांच टीम (SIT) गठित की गई है। शुरुआती जांच से पता चला कि प्रश्नपत्र की तस्वीरें परीक्षा शुरू होने के आधे घंटे के भीतर इंटरनेट पर फैल चुकी थीं। पुलिस ने टिहरी की एक असिस्टेंट प्रोफेसर सुमन के बयान का हवाला देते हुए कहा है कि प्रश्नपत्र की पहली प्रतियां एक खालिद नामक व्यक्ति के माध्यम से उन्हें भेजी गई थीं। खालिद पर अब तक पकड़ नहीं हुई है और वह खोज का मुख्य फोकस है। हाकम-पंकज की गिरफ्तारी के बावजूद पेपर कैसे बाहर पहुँचा, यह जांच का बड़ा सवाल बना हुआ है।
छात्र-युवाओं की प्रतिक्रिया और प्रदर्शन
प्रदेश भर के बेरोजगार संघों और अभ्यर्थियों ने पेपर लीक की घटनाओं को अपनी मेहनत और भविष्य के साथ धोखा बताया है। देहरादून में कई जगह विरोध प्रदर्शन और रोड जाम हुए; युवाओं ने आयोग के कार्यालयों और कुछ चौराहों पर धरना-प्रदर्शन किया। प्रशासनिक अफसरों के साथ चर्चा के लिए पहुंचे जिलाधिकारी के प्रस्ताव को युवा नेताओं ने ठुकरा दिया और प्रदर्शन तेज रखी। छात्र मांग कर रहे हैं कि या तो परीक्षा रद्द कर के दोबारा कराई जाए या फिर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर पूरी पारदर्शिता के साथ परिणाम घोषित किए जाएँ।
न्यायिक व्यवस्था
प्रकरण की गंभीरता देखते हुए राज्य सरकार और आयोग ने कई कदम उठाए हैं — SIT की स्थापना, पोस्ट-पंच की फोरेंसिक जाँच, मोबाइल लोकेशन और सीसीटीवी फुटेज खंगालने के आदेश और संबंधित आरोपियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज। तमाम दबाव के बीच सरकार ने मामले की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए जांच को न्यायिक निगरानी में चलाने का निर्णय लिया है ताकि जांच की पारदर्शिता बन पाए और सार्वजनिक भरोसा बहाल हो सके। हालांकि सरकारी एकश्न के बावजूद छात्रों में आक्रोश कम नहीं हो रहा।
यह पहला मामला नहीं है जब उत्तराखंड में परीक्षा-लूट के आरोप सुर्खियों में आए हों। पिछले वर्षों में भी भर्ती परीक्षाओं में पेपर लीक और नकल माफिया की सक्रियता की घटनाएँ सामने आई थीं; इन घटनाओं के बाद राज्य सरकार ने कड़े-कड़े आदेश और एन्टी-नकल कानून लागू करने का संकल्प व्यक्त किया, पर आरोपियों की पैरवी और मामले की जटिलता पर सवाल उठते रहे हैं। हर बार नकल विरोधी कठोर कानूनों के बावजूद लंबे समय तक आरोपियों की हिरासत और सजा पर रियायत की गई है।
अब आगे क्या ?
सरकारी अमले के हिसाब से अगले कुछ दिनों में SIT और न्यायिक पर्यवेक्षण के तहत पुलिस द्वारा जुटाए गए सीसीटीवी, मोबाइल-डेटा, बैंक-ट्रांज़ैक्शन, स्कूल-होटल के रेज़र्वेशन और अन्य तकनीकी साक्ष्यों की पड़ताल होगी। सरकार ने कहा है कि यदि जांच में किसी पूर्व-नियोजित साज़िश, शोषण या बड़े गिरोह की संलिप्तता पाई जाती है तो घिनौनी गिरोह-सदस्यों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई की जाएगी और आयोग की जवाबदेही तय की जाएगी। छात्र संगठन फिलहाल रद्दी करण व पुनर्परीक्षा की मांग पर अड़े हैं और यदि शीघ्र संतोषजनक कार्रवाई न हुई तो व्यापक हड़ताल और न्यायालयीन प्रदर्शन की चेतावनी दे रहे हैं।
UKSSSC पेपर लीक कांड ने भर्ती प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं और बेरोज़गार युवाओं में गहरा आक्रोश भर दिया है। गिरफ्तारियों और तकनीकी जाँच के बावजूद मामले की जटिलता और उच्च-स्तरीय संलिप्तता की आशंका जांच को न्यायिक निगरानी की ओर ले आई है।