राजधानी दिल्ली की तरह उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में भी कनॉट प्लेस मार्केट मौजूद है. लेकिन जल्द ही एक सदी के इतिहास का गवाह रहा देहरादून का ”कनॉट प्लेस”, अब अतीत के पन्नों में ही सिमट कर रह जाएगा. 14 सितम्बर को इस बिल्डिंग को खाली करवाने के साथ ही इसे जमींदोज करने की करवाई भी शुरू होगी. आपको बता दें की यह मार्केट दिल्ली की तर्ज पर 1930 में देहरादून में बनवाई गई थी और 82 सालों से यह देहरादून की पहचान बनी है. लेकिन अब इसका हर निशान मिट्टी में मिल जाएगा. बता दें की देश में जब ब्रिटिश काल था तब इस बिल्डिंग का निर्माण किया गया था. इस बिल्डिंग को देहरादून के नामी-गिरामी धनी और बैंकर्स रहे सेठ मनसाराम कराया था. इस ऐतिहासिक इमारत को बनाने का सपना, सेठ मनसाराम ने दिल्ली में स्थित कनॉट प्लेस की बिल्डिंगों की डिजायन से प्रभावित होकर तैयार किया था.
इस बिल्डिंग को बनाने के लिए सेठ मनसाराम ने बॉम्बे से आर्किटेक को बुलाया था, और इसके निर्माण के लिए सेठ मनसाराम ने भारत इन्स्योरेन्स से एक लाख 25 हजार रूपये लोन लिया था. 1930 से 40 के दशक में देहरादून की ये पहली इमारत थी, जिसको तीन मंजिला तैयार किया गया था. इसे पकिस्तान से आने वाले लोगों के लिए बनाया गया था, ताकि वे यहां आकर व्यापार कर सकें. 40 के दशक में तैयार हुए इस ऐतिहासिक इमारत में 150 से अधिक भवन और 70 से ज्यादा दुकाने बनायी गयी थी. इस इमारत को देहरादून में एक व्यापारिक और व्यवसायिक केंद्र बनाने की मंशा से सेठ मनसाराम ने तैयार किया था, लेकिन बिल्डिंग तैयार होने के बाद सेठ मनसाराम भारत इन्स्योरेन्स का 1 लाख 25 हजार का लोन वापस नहीं कर पाए और बैंक करप्ट हो गये. जिसके बाद उनकी कई सम्पति को भारत इन्स्योरेंश कम्पनी ने अपने कब्जे में ले ली, जिसमे देहरादून के कनॉट प्लेस भी शामिल है, जो बाद में LIC के पास चले गयी और तब से अब तक इमारत में रहने वाले लोगों और LIC के बीच लड़ाई चल रही है. आगे पढ़िए
आखिरकार 14 सितम्बर को इस बिल्डिंग को खाली करवाने के साथ ही इसे जमींदोज करने की करवाई भी शुरू होगी. अपने आप में एक सदी के इतिहास का गवाह रहा देहरादून का कनॉट प्लेस अब अतीत के पन्नों में ही सिमट कर मिट्टी में मिल जाएगा. वहीं दुकानें और आवास खाली कराने के नोटिस के बाद से लोगों में बैचेनी है. उनके कारोबार यहां पर है और परिवार का गुजारा चलता है. कुछ परिवार ऐसे हैं, जो पाक से यहां आए. आर्मी ट्रेडिंग के नाम से दुकान चलाने वाले अधिवक्ता देवेंद्र सिंह कहा कि यहां पर 150 दुकान और फ्लैट हैं. गिरासु भवन की गलत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है. कुछ हिस्सों के जर्जर होने का मामला था. उसे पूरी बिल्डिंग से जोड़कर भ्रम फैलाया जा रहा है. सैलून संचालक इलियास अहमद ने बताया कि उन्हें यहां करीब 60 साल हो गए हैं. किराया कोर्ट में जमा किया जा रहा है. कोर्ट का फैसला एक संपत्ति को लेकर है, लेकिन वह पूरी बिल्डिंग को खाली कराना चाहते हैं. कार्रवाई का विरोध सभी दुकानदार करेंगे. हालांकि ये देखना होगा की प्रशासन इस पर आगे क्या निर्णय लेता है. लेकिन इतना जरूर है कि अगर इमारत खाली होती है और इसे जमींदोज करने की कार्यवाही होती है तो देहरादून की इस ऐतिहासिक इमारत की सिर्फ यादें ही रह जाएंगी.