उत्तराखंडचम्पावत

मां पूर्णागिरि मेले में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, प्रतिदिन 20 हजार से ज्यादा लोग कर रहे दर्शन

उत्तर भारत का यह सबसे बड़ा मेला माना जाता है. मान्यता है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है.

पूर्णागिरी का मंदिर अन्नपूर्णा शिखर पर 5500 फीट की ऊंचाई पर है. कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहां पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था. देवी मां के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है पूर्णागिरी माता का मंदिर, जिसे महाकाली की पीठ भी माना जाता है. देव भूमि उत्तराखंड में मौजूद पूर्णागिरी माता का मंदिर पर हर नवरात्रि को भक्तों की माता के दर्शन के लिए भारी भीड़ उमड़ती है.

पूर्णागिरी माता मंदिर को महाकाली की पीठ माना जाता है. दरअसल जहां-जहां पर सती के अंग गिरे वहां पर शक्तिपीठ स्थापित हो गये. मान्यता के अनुसार पूर्णागिरी में सती का नाभि अंग गिरा जिसके चलते यहां पर देवी की नाभि के दर्शन व पूजा अर्चना की जाती है. इस शक्तिपीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहां आते हैं. यह स्थान नैनीताल जनपद के पड़ोस में और चंपावत जनपद के टनकपुर से मात्र 17 किलोमीटर की दूरी पर है. उत्तर भारत का यह सबसे बड़ा मेला माना जाता है. यूपी-बिहार से भी यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. इस शक्तिपीठ को लेकर मान्यता है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है. बीते दो वर्षों तक यह मेला कोरोना की भेंट चढ़ा.

पूर्णागिरि धाम में मेले के चौथे दिन आस्था की बयार बही. तकरीबन 20 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने माता के दर्शन किए. मंगलवार को भारी भीड़ होने से श्रद्धालुओं को माता के दर्शन के लिए घंटों इंतजार करना पड़ा. मेला शुरू होने के बाद मां पूर्णागिरि धाम मेले में भक्तों का तांता लगा हुआ है. श्रद्धालु दूर-दूर से माता के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं. बिहार, दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, पंजाब समेत पड़ोसी देश नेपाल से भी श्रद्धालु माता के दर्शन को पूर्णागिरि पहुंच सिद्धबाबा धाम जा रहे हैं. मंदिर के पुजारी गिरीश चंद्र पांडेय, महेश चंद्र पांडेय और जर्नादन पांडेय ने बताया कि हर रोज माता के दरबार में श्रद्धालुओं के आने से रौनक लौटी है.

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