ओंकार बहुगुणा
देवभूमि उत्तराखंड Uttarakhand में सैकड़ों लोक परंपरा, त्यौहार और धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं लेकिन क्या आपने कभी ऐसा भी त्यौहार देखा है जिसमें शिशिर ऋतू के आगमन का उत्साह और हरियाली को विदाई दी जाती हो, नहीं न तो हम आपको बताते हैं. गंगा जी के शीतकालीन प्रवास मुखवा में पारंपरिक सेलकु मेले की बात ही कुछ अलग है. उंचे बुग्यालों से लाए गए ब्रह्मकल समेत विभिन्न प्रजातियों के फूलों को आराध्य देवता समेश्वर को अर्पित कर ग्रामीण रासौ तांदी के साथ सेलकु पर्व के उल्लास में झूमते हैं.
पतित पावनी भगवती गंगा के शीतकालीन प्रवास मुखवा गांव में हर साल सेलकु पर्व Selku mela का आयोजन जाता है. बुग्यालों से लाए गए फूलों की चादर समेश्वर देवता के चौक में बिछाई जाती है. जिसके उपर से क्षेत्र के आराध्य समेश्वर देवता की डोली गुजरने के बाद इन फूलों को ग्रामीण प्रसाद स्वरूप घर लेकर जाते हैं. इस सेलकु मेले में ग्रामीण पारंपरिक लोक नृत्य रासौं तांदी का भी आयोजन करते हैं. जिसमें बड़ी संख्या में हजारों की तादात में ग्रामीण अपने आराध्य, देवता समेश्वर से भी सुख शांति की प्रार्थना करते हैं.

ऊँचे बुग्यालों से आते हैं फूल
पहाड़ों में एक कहावत है कि हरियाली मैदान से शुरू होती है और सूखापन बुग्यालों Bugyal से. गांवों में अनूठी परंपरा है कि जब सर्दियां अपनी दस्तक देने लगती है और पहाड़ बुग्याल अपनी हरी रंगत छोड़ पीले दिखने शुरू होते हैं तो ठीक इन दिनों के बीच ही ग्रामीण उंचे बुग्यालों में उगने वाले रंग बिरंगे फूलों को तोड़कर गांव तक लाते हैं और उसे अपने आराध्य देवताओं को अर्पित करते हैं. यह सिर्फ फूल अर्पित करने भर की रस्मअदाईगी नहीं होती है बल्कि पूरे दिन व रात भर पारंपरिक लोक नृत्यों, देव नृत्यों, लोक देवताओं के आर्शीवाद का एक महाउत्सव होता है.
इस मेले में देवपश्वा डांगरियों (छोटी कुल्हाड़ी) के ऊपर चलकर अपना आसन लगते हैं. वहीं, ग्रामीण भगवान सोमेश्वर Someshwar devta को ब्रह्मकमल Brahmkamal का प्रसाद चढ़ाते हैं. जबकि, सुसराल से मायके आई बेटियां भगवान सोमेश्वर को अपनी भेंट देती हैं और आशीर्वाद लेती हैं. सेलकु मेले में जहां पहली रात ग्रामीणों ने भेलों (आग की लकड़ियों से बना) को घुमाकर और देवडोली के साथ रासो तांदी लगाते हैं तो वहीं, दूसरे दिन ब्रह्मकमल के साथ भगवान सोमेश्वर की पूजा की जाती है. उसके बाद सोमेश्वर देवता पश्वा पर अवतरित हुए और डांगरियों के ऊपर अपना आसन लगाकर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं
ब्रह्मकमल भेंट कर होता है समापन
मुखबा गांव में सेलकु मेला भव्यता के साथ मनाया जाता है. क्योंकि, सोमेश्वर देवता का मुख्य स्थान यहां माना जाता है और यह दिन सुसराल गई बेटियां के लिए महत्वपूर्ण होता है. क्योंकि, इस दिन गांव की सभी बेटियां मायके पहुंचकर अपने आराध्य देव को भेंट चढ़ाकर अपने परिवार की खुशहाली की कामना करती है .मेला बहुत ही पौराणिक है और ग्रामीणों घरों में स्थानीय पकवान बनाकर मेहमानों की आवभगत करते हैं. स्थानीय बोली में ‘सेलकु’ का अर्थ होता है ‘सोएगा कौन’. इसलिए ग्रामीण पहले पूरी रात लोकनृत्यों का आयोजन करते हैं. मेले के समापन पर सभी मेहमानों को ब्रह्मकमल भेंट कर खुशहाली की कामना कर विदा किया जाता है.